बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

सस्ते टैरिफ प्लान से रिलायंस जियो ऐसे करेगी कमाई? (RELAINCE JIO)


जियो के टैरिफ प्लान दिखने में बड़े ही आकर्षक हो सकते हैं, मगर फ्री वॉयस कॉल देने के बाद भी जियो दूसरी कंपनियों के मुकाबले ज्यादा पैसे वसूल सकती है। टेलीकॉम कंपनियों के पिछली तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में एवरेज रिवेन्यू पर यूजर 150 रुपए प्रति माह है। इसका मतलब है कि कंपनियों को हर उपभोक्ता से औसतन 150 रुपए मिलते हैं। अगर कोई उपभोक्ता 250 रुपए महीना खर्च करता है तो उसे हाई वैल्यू कस्टमर माना जाता है।

जियो की वेबसाइट पर जाएंगे तो यहां सभी टैरिफ प्लान दिखाए गए हैं। इन पैक्स की शुरुआत 19 रुपए से होती है, जो 129, 149, 299, 499 और आगे 4999 रुपए तक उपलब्ध हैं। अगर कंपनी के नियम पर नजर डालने पर पता चलता है कि 19, 129 और 299 रुपए वाले पैक आपका पहला रिचार्ज नहीं हो सकते, यानि आपको इससे पहले 149, 499 या इससे बड़ा कोई प्लान लेना होगा।

अगर चुनते है ये प्लान
अगर आप सिर्फ वॉयस कॉलिंग ज्यादा करते हैं तो आप 149 रुपए में पैक चुनना पसंद करेंगे। जहां आपको 28 दिन के लिए अनलिमिटेड वॉयस कॉलिंग और 300 एमबी डेटा मिलेगा। इस तरह आप लगभग 150 रुपए देकर एक एवरेज कस्टमर की लिस्ट में आ जाते हैं। अब अगर आप 300 एमबी से ज्यादा डेटा यूज करना चाहते हैं तो कौन सा प्लान लेंगे? 19 रुपए वाले पैक की वैलिडिटी 1 दिन, 129 रुपए वाले पैक की वैलिडिटी 7 दिन है और 299 रुपए वाले पैक की वैलिडिटी 21 दिन। जाहिर है अगर कोई 28 दिन वाला पैक बचता है तो वह 499 रुपए का होगा। यहां यह भी बताना जरूरी है कि अनलिमिटेड 4G नाइट डाटा की टाइमिंग रात 2 बजे से सुबह 5 बजे तक है। मतलब मात्र 3 घंटे के लिए और वो भी ऐसे समय जब अधिकतर लोग सोए रहते हैं।

1जीबी के लिए इतनी चुकानी पड़ेगी कीमत?
हर प्लान के साथ 200 एमबी से लेकर 150 जीबी तक का वाई-फाई डेटा भी दिया गया है। वाईफाई डेटा वहीं इस्तेमाल कर सकता है जिसके आसपास जियो का लगाया हुआ वाईफाई होटस्पॉट उपलब्ध हो, जिसकी संख्या काफी कम है। अब अगर हम इन पैक्स से Wi-Fi data को निकाल लेते हैं तो असल में हमें एक जीबी के लिए कितना खर्च करना पड़ रहा है।

149 रुपए वाले पैक में 300 एमबी: 497 रुपए/जीबी
499 रुपए वाले पैक में 4 जीबी डेटा= 125 रुपए/जीबी
1499 रुपए वाले पैक में 20 जीबी डेटा = 75 रुपए/जीबी
2499 रुपए वाले पैक में 35 जीबी डेटा = 71 रुपए/जीबी
3999 रुपए वाले पैक में 60 जीबी डेटा = 66 रुपए/जीबी
4999 रुपए वाले पैक में 75 जीबी डेटा = 66 रुपए/जीबी

अगर आप सबसे महंगा पैक भी इस्तेमाल करते हैं तब भी आपको 50 रुपए में 1 जीबी इंटरनेट नहीं मिल पाता। कंपनी का 50 रुपए में 1 जीबी देने वाला रेट तभी इस्तेमाल करता है जब इसमें वाई-फाई डेटा को भी जोड़ा जाए। मगर अधिकांश लोग वाई-फाई डेटा का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वाई-फाई हॉटस्पॉट हर जगह उपलब्ध नहीं है।

वॉयस कॉल पर चार्ज क्यों नहीं?
जियो की वॉयस कॉलिंग सुविधा दूसरों से अलग है। जियो की वॉयस कॉल इंटरनेट के जरिए जाती है, ठीक स्काइप और व्हाट्सऐप की तरह।

क्यों जियो दे रहा अनलिमिटेड नाइट डेटा?
जहां एक बार कंपनी ने पूरा नेटवर्क इन्फास्ट्रकचर विकसित कर लिया, उसके बाद नेटवर्क प्रोवाइडर को इंटरनेट डेटा का कोई खर्च नहीं आता। दरअसल अन्य कंपनियां इस समय महंगे दाम पर डेटा बेच रही हैं क्योंकि उनके पास इस तरह का नेटवर्क नहीं है जो बड़ी संख्या में डेटा का भार नहीं झेल सके। वहीं जियो के पास बेहतरीन वाला फाइवर ऑप्टिक नेटवर्क है, जो 5जी और 6जी तक काम कर सकता है। वहीं अन्य कंपनियों को उसी नेटवर्क से वॉयस कॉलिंग सुविधा देनी पड़ती है।

ज्यादा ग्राहक हासिल करने की होड़
कंपनी इस समय जो मुफ्त ऑफर दे रही है इसके पीछे कंपना मकसद ग्राहकों की संख्या बढ़ाना है। जियो चाहती है कि उसकी साथ एंट्री के साथ ही 10 करोड़ ग्राहक मिल जाएं। एक रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी अगर यह लक्ष्य पूरा कर लेती है तो उसे प्रति यूजर करीब 400 रुपए का रिवेन्यू मिलेगा। इस तरह औसतन 150 से 250 रुपए प्रति यूजर रिवेन्यू कमा रही अन्य कंपनियो से जियो काफी ज्यादा मुनाफा कमाएगी। वहीं भारत में अभी केवल 25 फीसदी लोगों के पास ही स्मार्टफोन है। इसे देखते हुए रिलायंस जियो सस्ते स्मार्टफोन देकर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक स्मार्टफोन की पहुंच बना रही है। कंपनी 2999 रुपए से लेकर 5999 रुपए तक स्मार्टफोन बेच रही है।

सौजन्य खबर इंडिया


बुधवार, 21 सितंबर 2016

कॉमेडियन कपिल शर्मा का साथ छोड़ेगें सिद्धू, जाने क्यों? (the kapil sharma show)

द कपिल शर्मा शो में अब नवजोत सिंह सिद्धू नजर नही आएगें। जी हां, नवजोत सिंह सिद्धू इस शो को अब बाय बोल देंगे। 28 सितंबर को नवजोत सिंह सिद्धू का आखिरी शो होगा।
गौरतलब है कि कपिल शर्मा के शो को सफल बनाने में जितना हाथ कपिल का है उतना ही सिद्धू का भी है। दर्शकों को सिद्धू का अंदाज और शायरी भी उतनी ही पसंद है जितनी कपिल की कॉमिक टाइमिंग. दर्शक बेशक सिद्धू को शो में बहुत मिस करने वाले हैं। नवजोत सिंह सिद्धू ने जब से राज्यसभा से इस्तीफा दिया है तब से ये अटकलें लगाई जा रही थीं कि वो आप या कांग्रेस में शामिल होंगे। हालांकि आप या कांग्रेस में कोई बात ना बनने की वजह से सिद्धू ने अपना अलग मोर्चा बना लिया है। अब सिद्धू पूरी तरह से आवाज ए पंजाब मोर्चे के लिए पंजाब में काम करेंगे। सूत्रों की मानें तो सितंबर में शो के साथ सिद्धू का कॉन्ट्रेक्ट खत्म हो रहा है और वो अब इसे आगे नहीं बढ़ाएंगे। दरअसल कुछ समय पहले सिद्धू ने आवाज-ए-पंजाब मोर्चे की घोषणा की थी। अब आवाज-ए-पंजाब से जुड़े लोगों का कहना है कि सिद्धू सितंबर के बाद राजनीति की कमान अच्छे से संभालेंगे।

शो से 25 करोड़ की सालाना आय करते थे सिद्धू
द कपिल शर्मा शो से नवजोत सिंह सिद्धू 25 करोड़ रुपये की सालाना कमाई करते थे। सूत्र बताते हैं कि सिद्धू अब पूरा समय राजनीति को देंगे इसलिए द कपिल शर्मा शो से हट रहे हैँ।



मंगलवार, 20 सितंबर 2016

बुर्ज खलीफा से भी ऊंचा होगा भारत का यह मंदिर

विश्व की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा को भारत का एक मंदिर मात देगा। इस मंदिर का निर्माण शुरु हो चुका है और इसकी ऊंचाई बुर्ज खलीफा की ऊंचाई से अधिक होगी।
भगवान बांकेबिहारी लाल की नगरी वृंदावन में दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर बन रहा है। इस मंदिर की इमारत दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा से भी ऊंची होगी। बताया जा रहा है कि इस्कॉन संस्था की ओर से वृंदावन में बनाए जाने वाले 70 मंजिला चंद्रोदय मंदिर की ऊंचाई 210 मीटर होगी और इसे एक पिरामिड के आकार में बनाया जाएगा। इसे बनाने की तैयारियां 2006 से की जा रही थीं। इस मंदिर की खास बात यह है कि इसकी केवल ऊंचाई ही नहीं बल्कि गहराई भी अधिक होगीताकि नींव भी उतनी ही मजबूत रहे। यह इमारत लगभग 55 मीटर गहरी होगी और इसका आधार 12 मीटर तक ऊंचा होगाजबकि दुबई स्थित दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा की गहराई मात्र 50 मीटर है। प्राकृतिक आपदा के लिहाज से भी इसे काफी मजबूत बनाया जा रहा है और 8 रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता का भूकंप भी इसे क्षति नहीं पहुंचा सकेगा। इसके अलावा इसमें प्रयोग किए जाने वाले कांच और अन्य सामान भी भूकंप रोधी होंगे। कुल 511 पिलर वाला यह मंदिर 9 लाख टन भार सहने की क्षमता वाला होगा और 170 किलोमीटर की तीव्रता के तूफान को भी झेलने में सक्षम होगा। इस मंदिर का निर्माण 2022 तक पूरा हो सकेगा।
होगा विश्व का सबसे मॉडर्न मंदिर
बुर्ज खलीफा को ऊंचाई में मात देने वाला यह मंदिर अब तक का सबसे मॉडर्न मंदिर भी होगाजिसमें 4डी तकनीक से देवलोक और देवलीलाओं के दर्शन भी हो सकेंगे। इस मंदिर के आसपास प्राकृतिक वनों का वातावरण तैयार किया जाएगा और यमुनाजी का प्रतिरूप तैयार कर नौका विहार की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा सकेगी। इसके अलावा इसमें श्रीकृष्ण के जीवन लीलाओं को जानने के लिए पुस्तकालय व अन्य माध्यम भी होंगे। 70 मंजिला इस इमारत के प्रारंभिक 3 तलों पर चैतन्य महाप्रभु और राधाकृष्ण बलराम के मंदिर के अलावा अन्य तलों पर आगंतुकों के लिए गैलरीटेलिस्कोप सुविधा और अन्य सुविधाएं होंगी जो आसपास के धर्मिक स्थलों से जुडऩे के लिए सहायक होंगी। इसमें लगाई जाने वाली लिफ्ट की तीव्रता मीटर प्रति सेकंड होगी। यहां 10 एकड़ में अंडरग्राउंड पार्किंग के अलावा सड़क निर्माण और अन्य सुविधाओं को मिलाकर इसके निर्माण में कुल 500 करोड़ रुपए खर्च होंगे। 

साभार-राजस्थान पत्रिका

सोमवार, 19 सितंबर 2016

15 लाख विवाहित बच्चें, 366 बच्चों का तलाक, 3506 बच्चियां विधवा (HAAL-E-RAJASTHAN)


बाल विवाह के मामले में अव्वल राजस्थान में विवाह तो जोर जबरदस्ती से करा दिया जाता है लेकिन उसके बाद उनके खतरनाक परिणाम से शायद ही कोई परिचित हो। मेरिटल स्टेटस से जुडी एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 10-14 वर्ष के करीब 366 बच्चे 'तलाकशुदा'। रिपोर्ट के अनुसार इसी उम्र सीमा के भीतर करीब 3,506 विधवा हैं और 2,855 मामले अलगाव के नजर आए हैं। 
राजस्थान में बाल विवाह काफी पुरानी रुढिवादी सोच का नतीजा है। अभी हाल ही में दंपतियों के बीच अलगाव की समस्या और समाधान को लेकर एक सर्वे किया गया। इसमें सामने आया कि 10 वर्ष से लेकर 14 वर्ष की उम्र सीमा में 2.5 लाख विवाहित लोग हैं और 15-19 वर्ष के बीच इनकी संख्या 13.62 लाख है। रिपोर्ट के अनुसार मिश्रित उम्रसीमा के विवाहित लोगों की कुल संख्या 3.29 करोड़ है, जिसमें से 4.95 फीसदी लोग नाबालिग हैं।
राजस्थान यूनिवर्सिटी के सोशियॉलजी विभाग के पूर्व प्रमुख राजीव गुप्ता ने तलाक और अलगाव के कारणों पर चर्चा करते हुए कहा कि ऐसे ज्यादातर मामलों के पीछे दहेज, बेटे-बेटी में फर्क, अवैध संबंध जैसे कारण जिम्मेदार हैं। उन्होंने ऐसे नाबालिग शादी-शुदा बच्चों के साथ अपने गत अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि अलगाव और तलाक के बाद उनकी जिंदगी बद से बदतर हो जात है, उन्हें कई वर्षों तक और कई बार जीवनभर नरक जैसी जिंदगी अकेले जीनी पड़ती है। हरियाणा भ्रूण हत्या के लिए तथा राजस्थान बाल विवाह के लिए कुख्यात है, लोग हैं की सुधरना नहीं चाहते! इन गंदगियों में ही रहने की आदत हो गई है उन्हें, जैसे सुअर को कीचड़ पसंद होता है ठीक उसी तरह। बताया गया कि राजस्थान में आखा तीज (कई जगह अक्षय तृतीया) के दिन भारी मात्रा में बाल विवाह होते हैं। हालांकि सरकार ने ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए तमाम पहल की हैं।


शनिवार, 17 सितंबर 2016

भीख मांगने से लेकर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी तक का सफर (inspirational story of jaivel)

यह कहानी है चेन्नई के जयवेल की जिसने विषम परिस्थितियों में भीख मांगकर परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह किया, कडी मेहनत और सच्ची लगन से गरीबी में आने वाले चुनौतियों का सामना किया और खुद को साबित करते हुए वह कर डाला जोकि आम और खास तक के लिए एक सपना होता है। जी हां, जयवेल ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का एंट्रेस एग्जाम पास कर लिया और अब वह भीख नही मांगेगा, बल्कि पढ़ाई करेगा।

एंट्रेस किया पास
22 साल के जयवेल ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का एंट्रेस एग्‍जाम पास किया है। अब इसके बाद जयवेल को परफॉर्मेंस कार एन्‍हैंसमेंट टेक्‍नोलॉजी इजीनियरिंग में एडमिशन मिल जाएगा। इस कोर्स में रेसिंग कारों की क्षमता बढाए जाने के बारे में सिखाया जाता है। आपको लग रहा होगा कि इसमें क्‍या बड़ी बात है कि वह विदेश जाकर पढा़ई कर रहा है। कई छात्र विदेश जाते हैं और अपनी पढा़ई पूरी करते हैं। लेकिन आपको बता दें कि जयवेल के लिए चेन्‍नई से कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का सफर इतना आसान नहीं था। विदेश तो छोड़िये जयवेल ने भारत तक में अपने पढा़ई की कल्‍पना तक नहीं की थी।

मां है शराबी, भीख मांगकर होता था परिवार का गुजारा
जयवेल की पारिवारिक पृष्‍ठभूमि ऐसी नहीं है कि इतना बड़ा सपना संजो सके। वास्‍तव में जयवेल ऐसे परिवार से है जो कि भीख मांगकर अपना गुजारा करता था। जयवेल के पिता इस दुनिया में नहीं है और मां को शराब पीने की आदत है। एक समय तो जयवेल ने खुद भीख मांगकर अपना और परिवार का पेट पाला था।
80 के दशक में आंध्र प्रदेश में सूखा पड़ने के कारण लोगों को अपने घरों को छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा था। सूखे के कारण जयवेल का परिवार चेन्‍नई पहुंचा। वहां कोई ठौर-ठिकाना तो था नहीं इसलिए भीख मांगने के अलावा कोई विकल्‍प नहीं था। जयवेल उन लड़कों में से था, जिनके घरवाले ही उनसे भीख मंगवाते हैं। शाम तक जो भी आता था, उसमें से आधे से ज्यादा की उसकी मम्मी शराब पी जाती थीं।

सुयम चैरिटेबल की पहल पर पहुंचा कैम्ब्रिज
लेकिन जयवेल के ये दुख भरे दिन तब गायब हुए जब सुयम चैरिटेबल ट्रस्‍ट के उमा व मथुरमन की नजर उस पर पड़ी। ये कपल फुटपाथ पर बच्‍चों की फिल्‍म 'पेवमेंट फ्लॉवर' बना रहे थे। तब उन्‍होंने जयवेल को देखा तो उन्‍हें लगा कि इस लड़के के लिए कुछ करना चाहिए। उन्‍होंने पढ़ाई के लिए जयवेल के परिवार से बात की तो उन्‍हें ना ही जवाब में मिला क्‍योंकि परिवार को लगा कि सरकार से पैसा लेकर ये लोग उनके लिए कुछ नहीं करेंगे। लेकिन उनकी गलतफहमी दूर करते हुए दोनों ने जयवेल को 1999 में अपनी कस्‍टडी में लिया। जयवेल ने उनकी मदद से इंटरमीडिएट में अच्‍छे अंकों से पास होकर दिखाया। इसके कारण उसे फंडिंग मिली। उसने कैम्ब्रिज यूनिविर्सटी के लिए एंट्रेस एग्‍जाम दी और सफलता मिल गई। उमा का ट्रस्ट अब तक 17 लाख रुपए कर्जा केवल इसलिए ले चुका है, ताकि जयवेल को लन्दन भेजा जा सके। सलाम ऐसे ट्रस्ट को और उमा जैसे लोगों को जिन्होंने प्रतिभा को तराशा और उसे एक नई दिशा दी।

एजुकेशन सिस्टम है विकसित सीविलियन लूट (व्यंग्य)

लूट कई तरह की होती है। रात के अंधरे में यदि कोई घर का कीमती सामान साफ कर जाए तो उसे आमतौर पर लूट कहते हैं और सरेराह यदि कोई गांधी विरोधी हरकतों के साथ आपको अपने अधीन करके आपका कीमती सामान हड़प ले, तो उसे भी लूट ही कहा जाता है। हालांकि यह भी सच है कि पहली घटना को सरकारी दस्तावेजों में चोरी और दूसरी घटना को छीना-झपटी में रखने का चलन-सा बना हुआ है। मगर पिछले काफी समय से एक अन्य प्रकार की लूट भी बहुतायात में देखने को मिल रही है। आप की सहमति और अपनी जबरदस्ती से अगर आप की जेब पर कोई डाका डाल दे तो आखिर उसे क्या कहेंगे? हैं ना अजीब बात। मगर ऐसा संभव है साहब।
अभी पिछले दिनों एक नेता टाइप व्यक्ति ने दत्ता साहब को भरोसा दिलवाया कि वो उनका परमोशन करवा देगा। बस छोडा-सा खर्च लगेगा। दत्ता साहब जानते थे कि ना तो वो परमोशन की शर्ते पूरी करते है और ना ही उसके लिए शैक्षिक रूप से पात्र है। फिर भी उन्होंने खुशी-खुशी से नेताजी की जेब गरम कर दी। दत्ता साहब का मन इस बात को लेकर उदास था कि यदि गांधी जी ने अपना काम ठीक प्रकार नही किया तो कंगाली में आटा गिला हो जाएगा। उधर, चिंता इसलिए भी थी कि काम ना होने की स्थिति में उन्हें उनके गांधीजी वापस तो मिलने से रहे और यह बात किसी के साथ शेयर भी नही की जा सकती थी। खैर, इस प्रकार के मामले को इस टाइप की लूट का प्रारंभिक काल कहे तो गलत नही होगा।
इस टाइप की लूट की विशेषताएं भी अनेक है और जैसे-जैसे लूट का यह टाइप विकसित हो रहा है वैसे-वैसे इसके एडवांस्ड वर्जन भी निकल रहे हैँ। इसकी विकासयात्रा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया जाए तो किताब तो जनाब निश्चित रूप से लिखी ही जा सकती है। खैर, किताब की बात छोडिए और हाल फिलहाल में चल रहे इस टाइप की लूट के वर्जन से आपको रूबरू कराने का प्रयास करता हूँ। आज इस टाइप की लूट पूरी तरह से विकसितों की श्रेणी में आ चुकी है। हालांकि अभी भी इसके नए वर्जन लगातार लॉन्च हो रहे हैँ और पता नही कब कौन-सा वर्जन लॉन्च हो जाए और आप उसकी चपेट में आ जाए।
दरअसल, चपेट में आने के बाद ही कोई बता सकता है कि यह फलां-फलां टाइप की लूट का एडवांस्ड वर्जन है। शिक्षित वर्ग भी इन एडवांस्ड वर्जन का खूब लाभ उठा रहा है। कल ही मैं एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी से एक पाठ्यक्रम का दाखिलापत्र लेने गया तो उसकी एवज में मुझसे 1500 रूपये मांगे गए, हालांकि दाखिला पत्र एक पेज का था मगर उसके साथ संग्लन सामग्री (जिसकी मुझे कोई आवश्यकता नही थी) कम से कम 150 पेज की होगी, जोकि मुझे साथ में चेप दी गई। तब पता चला की यह भी एक एडवांस्ड वर्जन है। पुलिसकर्मी द्वारा अपनी जेब गरम कर बिना कागजात पूरे हुए भी वाहन को छोड़ देना तो अब बिते जमाने की बात हो गई है साहब। वाई-फाई और फोर-जी का जमाना है हाई-फाई होना तो लाजमी है। देखिए किस प्रकार इस टाइप की लूट के एडवांस्ड वर्जन हावी हो चुके है। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना कराने की एवज में मोटी रकम का वसूलना( बड़े-बड़े मंदिरों में प्री-बुकिंग की जाती है और महीनों बाद की तिथि दी जाती है आरती के लिए जैसे प्रभु के यहां बही-खाते में सीधे नाम दर्ज हो गया हो, फलां-फलां तारीख में फलां-फलां की अरदास सुनी जाएगी), रियल स्टेट में प्रोपर्टी खरीदनी हो तो कार जैसे महंगे तोहफे इनाम में और बताया जाता है कि प्रमोशनल ऑफर है साहब (गौया डीलर, तेरे पास जब पहले से ही इतने पैसे है तो क्यों बेरोजगारों का रोजगार छिन रहा है भाई), बाजार में 90 प्रतिशत ऑफ का फंडा (जब 90 प्रतिशत छूट देनी ही है तो क्यों इतनी हाई एमआरपी रखे हो), प्राइवेट स्कूल में एडमिशन के साथ किताबों, ड्रेस, स्टेशनरी आदि सभी सामग्रियों की ब्रिकी वो भी रेट टू रेट पर (भाई, स्कूल चला रहे हो या डिपार्टमेंटल स्टोर), इंश्योरेंस (कराओं कितने लाख का, खुद को मिलनी चवन्नी नहीं, बाद में परिजनों को मिले इसकी भी कोई गारंटी नही), पूरे शरीर का चैकअप कराओ आधे दाम पर (दो टेस्टों की जरूरत हो तो भी ऐसी स्कीमें जबरन चिकित्सकों द्वारा थमा दी जाती है, मरजानिए पैसे पेड़ पर नही उगते), डबल बैड के साथ टेबल फ्री, चेयर के साथ स्टूल फ्री, चाय की पत्ती में गिजर भी मिल सकता है ईनाम में (गीजरदेवा, चाय क्यूं बेच रहा है इतने मंहगे दामों पर), मंदिर का चंदा, गली में जागरण का फंडा आदि इस प्रकार के लूट के वर्जन्स के कुछेक ही नमूने है। मुझे पूरा यकीन है ऐसे ना जाने कितने एडवांस्ड वर्जनों से आप भी कभी ना कभी रूबरू हुए होंगे और पूरी उम्मीद इस बात की है कि रूबरू होते भी रहेंगे। मैं इसे विकसित सिविलियन लूट कहूं तो गलत नही होगा और उम्मीद है कि आप भी इसे स्वीकार करेंगे।
और अंत में सिविलाइज्ड सीविलियन लूट को परिभाषित करें तो कह सकते हैं कि दूसरे की जेब से सभ्य तरीके से मगर जबरन गांधीजी को निकालना सिविलाइज्ड सीविलयन लूट कहलाता है और गजब की बात तो यह है कि इस लूट में पीड़ित लूटकर्ता को पहचानता भी है मगर हाल-ए-दिल किसी को बताता भी नही।

जाने अभिनेत्री सुधा चंद्रन ने डिसेबिलिटी को चैलेंज कर कैसे पाया खुद का मुकाम (interview of sudha chandran)


सुधा चंद्रन नृत्य जगत का एक ऐसा नाम है जिन्होंने विकलांगता को बोना साबित कर आधी आबादी को एक नया नजरिया देते हुए अपनी मंजिल हासिल की। वर्ष 1981 में एक दुर्घटना में सुधा का एक पैर हमेशा के लिए जिस्म से जुदा हो गया। मगर उन्होंने कृत्रिम पैर के जरिए अपनी इस कमी को पूरा किया और नृत्य जगत में अपनी एक अनूठी छाप छोड़ी। वर्तमान में सुधा कई टीवी सीरियल्स में भी काम कर रही है। हमने की नृत्यांगना सुधाचंद्रन से बातचीत। प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश-

नृत्यांगना (डांसर) बनने का ख्याल कैसे आया?
मुझे डांसर बनाने की ख्वाहिश मेरी मां की थी। मां एक बड़ी क्लासिकल सिंगर थी वो चाहती थी कि वो एक डांसर बने। लेकिन उनका वो सपना साकार नही हो पाया, इसलिए उन्होंने मुझे डांसर बनाने की ठानी। जब मैं तीन साल की थी, तब मुझे मां डांस स्कूल लेकर गई, वहां के गुरुओं ने इतनी कम उम्र में डांस सीखाने पर आपत्ति जताई और एडमिशन देने से मना कर दिया। मगर मेरी मां अपनी जिद्द पर अड़ी रही और उन्होंने गुरुओं को विश्वास दिलाया कि वह खुद भी डांस क्लास के बाद घर पर खूब मेहनत कराएगी। इतना ही नहीं, मां इतनी उत्सुक थी कि उन्होंने यह भी कहा था कि यदि तब भी आपको लगे की बच्ची अच्छा परफोर्म नही कर रही है तो तब आप एडमिशन कैंसल कर देना। और इसी तरह मेरा तीन साल की उम्र में डांस स्कूल में एडमिशन हो गया। बाद में यह मेरी कब हॉबी बन गई, पता ही नही चला।
नृत्य का आपके व्यक्तिगत जीवन पर किस प्रकार प्रभाव पड़ा है?
बहुत प्रभाव पड़ा है। (फिर थोड़ा रुककर) डांस हैज लॉट ऑफ डाइमेंश्नस इन माई लाइफ ! शुरुआत में मैं अपनी मां के लिए डांस करती रही, फिर एक ऐसा समय भी आया जब यह मेरी हॉबी बन गई। लेकिन मेरे एक्सीडेंट के बाद यह मेरे लिए एक चैलेंज-सा बन गया। एक हॉबी की तरह जिसकी शुरूआत हुई थी, वो एक चैलेंज बनकर मेरे सामने खड़ा हो गया। जब मैंने वो चैंलेज भी पार किया तो लगा कि जिंदगी में सब कुछ मिल गया है। आज जब भी मैं डांस करती हुं तो मुझे महसूस होता है कि जिंदगी की कई प्रोबलम्स सोल्व हो गई है। मैं हमेशा कहती भी हूं कि जब भी आप दिल से डांस करते हैं तो जिंदगी की कई परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है।

बदलते परिपेक्ष्य में नृत्य को किस नजरिए से देखती है?
डांस तो हर जमाने में एक ही है। यह कह सकते है कि फोर्म ऑफ डांस काफी बदल रहे हैँ। अगर आप देखे तो आज वेस्टर्न डांस का चलन बहुत ज्यादा बढ़ गया है लेकिन दूसरी ओर क्लासिकल और सेमी-क्लासिकल डांस भी वापस चलन में आ रहा है। क्लासिकल डांस इज द मदर ऑफ ऑल डांसिज।

नाचने से तन स्वस्थ्य, मन प्रसन्न और आत्मा तृप्त होती है, क्या आप इसे मानते हैं?
यस, आर्ट इज डिवाइन। जब भी मैं डांस करती हूं तो लगता है कि मैं कही ना कही परमात्मा से जुड चुकी हूं। मेरा मानना है कि अगर ऐसा किसी के साथ नही होता तो वह कभी डांस नही कर सकता। डांस कभी भी हाथ-पैर हिलाने से नही होता। डांस दिल से जुडता है और जब कोई भी आर्ट फॉर्म दिल से जुड़ता है तो उसका तात्पर्य यही है कि आप डायरेक्टली परमात्मा से जुड़ जाते हो।

आप जब नाचते हुए पीक पर पहुंचती है तो उस समय क्या फील करती है?
कुछ फील नही होता, मैं सबकुछ भूल जाती हूं। नचाने के दौरान मैं अपनी एक अलग दुनिया क्रिएट करती हूँ। उसी दुनिया मैं रम जाती हूं। मुझे फिर कोई ऑडिएस नजर नही आती, कोई सोंग सुनाई नही देता, कोई ऑर्केस्ट्रा दिखाई नही आता। हां, स्टेज पर जाने से पहले जरूर मन मैं सोचती हूं कि कोई गलती ना हो और भगवान से प्रार्थना करती हूं कि यह प्रोग्राम सफल रहे।

तन की छिरकन और मन की थिरकन में कैसा नाता होता है?
मेरा मत इन्हें लेकर छोड़ा अलग है। मैं मानती हूं कि दोनों एक ही है। क्योंकि अगर आप मन से थिरकेंगे तो आपका पैर थिरकेगा और जब आपका पैर थिरकता है तो तब बदन थिरकेगा। हां, यह हो सकता है कि खाली परफोर्म करने के लिहाज से आप स्टेज पर जाए तब मन की थिरकन गायब रहती है। लेकिन उसमें रियलिटी नजर नही आती, परफोर्मेंस केवल बनावटी नजर आता है। लेकिन जब आप दिल से परफोर्म करने के लिए स्टेज पर जाते हैं तो दिल, मन, तन सब साथ-साथ थिरकते हैँ।

एक डांसर को सबसे ज्यादा संतुष्टी कब मिलती है?
किसी भी परफोर्मेंस के बाद जब लोग खड़े हो जाते हैं, हॉल तालियों से गूंज उठता है, उससे ज्यादा संतुष्टी किसी डांसर को ओर कहां मिलेगी? जैसे में एक दैवी का रूप धारण करती हूं, शक्ति के नाम से एक बैले करती हूंकृष्ण पर भी करती हूं, परफोर्मेंस के बाद जब ऑडियंस में से कोई आकर यह कहता है कि हम नही जानते कि दैवी और कृष्ण कैसे दिखते थे, मगर आपके जरिए हम इतना तो समझे कि शायद दैवी का यही रूप होगा और हम आपकी परफोर्मेंस के जरिए उनसे जुड सकें। तो मेरे लिए यब सबसे ज्यादा संतुष्टी वाला पल होता है।

एक डांसर के लिए रेगुलर प्रैक्टिस करना कितना जरूरी है?
बहुत जरूरी है... आप कितने ही प्रोफेशनल डांसर हो, कितने ही साल का तजुर्बा हो, मगर प्रतिदिन नियमित रूप से रियाज एक डांसर को डांस की कला से नियमित रूप से जोडे रखता है। मैं टेलीविजन सीरियलस कर रही हूं इसलिए मैं नियमित रूप से डांस को समय नही दे पाती, लेकिन जब भी समय मिलता है तो रियाज जरूर करती हूं। इसके अलावा डांस से जुड़े रहने के लिए महीने में चार-पांच शो भी जरूर करती हूँ।

इन दिनों टीवी पर आ रहे डांस रियलिटी शो के बारे में क्या कहेंगी?
कमाल के रियलिटी शोज आ रहे हैं। हम जैसे डांसर्स के लिए भी यह काफी अहम है क्योंकि हम लोग भी इनसे बहुत कुछ सीखते हैँ। जैसे कि अभी डीआईडी सुपर मॉम्स चल रहा है। उसमें उन महिलाओं को अपने सपने अब पूरे करने का मौका मिल रहा है जो किसी ना किसी परिस्थिति में पीछे छूट गए थे। ऐसी डांस रियलिटी शोज कितनी महिलाओं के सपने को एक बार फिर पंख लगाएगें?

नए डांसर को सामने लाने में इनकी क्या सार्थक भूमिका हो सकती है?
नए डांसर्स को ग्रुम करने में रियलिटी शोज का बहुत बड़ा हाथ है। शोज देश के कोने-कोने में छिपी हुई प्रतिभा को खोजते हैं, टेलेंट को मंच देते हैं, और देखते ही देखते वह सेलीब्रेटी बन जाते हैं।


इंडियन क्लासिकल डांस की बहुत समृद्ध परंपरा रही है, फिर आजकल यंगस्टर्स उनकी बजाए पॉपुलर फिल्मी या वेस्टर्न डांस को ज्यादा क्यों पसंद करते है?
यह तो कॉमर्शियलिटी है जिसकी वजह से यंगस्टर्स का रुझान पॉपुलर फिल्मी या वेस्टर्न डांस की ओर रूझान ज्यादा बढ़ रहा है। हम भी फिल्मी डांस करते हैं। लेकिन यह भी सच है कि अगर आपका बेस क्लासिकल डांस का है तो आप डांस के किसी भी फॉर्म को आसानी से कर सकते हैँ। क्लासिकल डांसर के बदन में सेंस ऑफ रिदम, टाइमिंग, म्यूजिक सबकुछ होता है, इसीलिए आसानी से डांस की कोई भी फॉर्म एडोप्ट की जा सकती है। थोड़ी प्रोब्लम यह हो सकती है कि डांस फॉर्म को एडोप्ट करने में कुछ समय लगे। मगर ऐसा नही हो सकता है कि क्लासिकल डांसर कोई दूसरा फॉर्म ना कर सकें।

फिजिकली डिसेबल होने के बाद आपको अपनी मंजिल पाने के लिए किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा?
जब आप कुछ करना चाहते हो तो फिर डिसेबिलिटी हो या नॉन डिसेबिलिटी, इससे कोई फर्क नही पड़ा। बस आपका दिल और दिमाग बहुत स्ट्रोंग होना चाहिए। यदि आप टारगेट बनाकर अपने मंजिल पर आगे बढ़ेंगे तो समस्याएं तो आएंगी, मगर एक दिन मंजिल पर भी आप पहुंच ही जाएगेँ।

नृत्य के क्षेत्र में कैरियर बनाने वाले युवाओं को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
प्रोफेशनलिज्म बहुत ज्यादा जरूरी है। आजकल देखा-देखी करने की प्रोबल्म बहुत ज्यादा हो रही है। जैसे मेरी फ्रेंड डांसर बनेगी तो मैं भी बनूंगी आदि। यह नही होना चाहिए। आपकी कमिटमेंट बहुत जरूरी है। आज के डांसर्स तो बहुत ही लक्की है क्योंकि जब हमने डांस की शुरूआत की थी तो तब घर से पैसे लगाकर डांसर बना जाता था। लेकिन आज डांसिंग का क्षेत्र बिल्कुल बदल गया है। शुरूआती दौर में आप कही भी छोटे-छोटे प्रोग्राम में हिस्सा ले सकते हैं, वहां से भी कुछ ना कुछ जरूर मिलता है। अच्छे डांसर बन जाते हैं तो बहुत एक्सपोजर है, कोरियोग्राफर के भी रास्ते खुले है। डांस सीखने के बाद डांसिग इस्टीट्यूट खोलकर भी आप अपने प्रोफेशन को आगे बढ़ा सकते हैँ। पेरेंट्स को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए आज के समय में डांस प्रोफेशन के तौर पर बहुत ज्यादा प्रोफिटेबल है। वर्तमान में परिस्थितियां बदल चुकी है और आने वाले समय में डासिंग के फील्ड में बहुत स्कोप है। बशर्ते दिल से मेहनत करें।

फ्यूचर को किस तरह देखती हैं? 
मैं फ्यूचर को कभी प्लान नही करती है। मेरा मानना है कि यदि आप प्रजेंट को अच्छे से जी जाते हो तो फ्यूचर से डरने की जरूरत नही होती। मैं प्रजेंट पर पूरा फोकस करती हूँ।

आकाश-सी छाती तो है by dusyant kumar


इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
– दुष्यंत कुमार

पियक्कड़ की श्रेणी (व्यंग्य)

एक कवरेज के दौरान सुबह के समय एक थानाध्यक्ष के समक्ष दो लोगों को बैठे देखा। मामले की पूछताछ की तो पता चला कि रात में एक तो शराब पीकर चौराहे पर उत्पाद मचा रहा था जबकि दूसरे को तो बिल्कुल भी होश नही था। वह उस जगह पड़ा था जहां सूअर इत्यादि जीव निवास करते हैं। चूंकि मैंने उसी रात थानाध्यक्ष महोदय को भी अंगूर की बेटी से मोहब्बत करते हुए देखा था तो मामला बड़ा दिलचस्प लगा। आखिर तीनों थे तो अंगूर की बेटी के चाहने वाले ही। बस अपना-अपना नसीब है। यहीं से मुझे पहली बार पियक्कड़ों की दो श्रेणी का आभास हुआ।
वैसे पियक्कड़ की वैरायटी तो बहुत-सी है। ड्रिंक करने के आधार पर जैसे डेली, विकली, मंथली, ओकेजनली इत्यादि। शराब के चयन के आधार पर जैसे कच्ची, देशी, विदेशी। ब्रांड के आधार पर जैसे विस्की, वोडका, रम आदि। मगर पियक्कड़ों की दुनिया में स्वर्ग-नरक की भांति दो अलग-अलग श्रेणियां भी है। इसे यह भी कह सकते हैं कि पियक्कड़ों को तीसरी दुनिया में पहुंचने के बाद जिन समस्याओं या परिस्थितियों का सामना करना होता है वो इस श्रेणी पर भी बहुत हद तक निर्भर करता है। पहली श्रेणी जिसे पियक्कड़ों की दुनिया में नरक की संज्ञा प्राप्त है में पियक्कड़ों के उपनाम बेवड़े, शराबी आदि होते हैं जबकि दूसरी श्रेणी जोकि स्वर्ग जैसी प्रतित होती है में पियक्कड साहब, अफसर आदि ही होते हैँ। नरक श्रेणी की पियक्कड़बाज में आमतौर पर मजदूर वर्ग, बेरोजगार, मध्यवर्गीय लोग होते हैं जिन्हें घर खर्च के अतिरिक्त अपनी तनख्वाह से पीने का जुगाड़ भी करना होता है। इस श्रेणी के डेली पैसेंजरों का मुख्य उद्देश्य होता है शराब की चाह। इनके रोम-रोम में शराब इस कदर बसती है कि पता ही नहीं चलता कब गटर में चले जाए या फिर किसी चौराहे के किनारे रात गुजर जाए, या किसी भी राह-चलते को नेताजी टाइप भाषण झाड़ दिया जाए ( हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि राहचलता कैसा व्यक्ति है, उसी के आधार पर पियक्कड़ के अगले कुछ मिनट निर्भर करते हैं)। इनकी खासियत यह होती है कि पीने का जुगाड़ तो देशी का होता है (जिसे पीते भी है) मगर यदि उसपर अंग्रेजी मुफ्त में मिल जाए तो गुरेज नही। फिर तो भइया गटर और रोड साइड एरिया ठीक ही बना है इन लोगों के लिए। दूसरे स्वर्ग कैटेगरी के पियक्कड़ों में भी डेली पीने वाले भी होते और ओकेजनली पीने वाले भी। मगर इनकी खासियत यह होती है कि ये पढ़े-लिखे अंदाज में ड्रिंक करते हैं, दूसरा लक्ष्मी जी का अभाव नही होता तो पूर्णरूप से स्वंय जी-भरकर पीने का मादा रखते हैं। इनकी खास बात यह है कि अघोरी या पूरा टल्ली होने के बाद भी इनका रुतबा कम नही होता। ये गाली भी देते हैं, बकबक भी करते हैं मगर सबकुछ होता है प्रोफेशनल अंदाज में। इनको अंगूर की बेटी से यदि किसी रोज ज्यादा मोहब्बत भी हो जाए तो भी इनके सिपहसालार घर तो छोड़ ही देते हैँ। कुलमिलाकर कहे तो इनकी नरक श्रेणी के लोगों की तरह बेकदरी नहीं होती।

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

अंदरखाने पाकिस्तान बना रहा है नया परमाणु स्थल

पाकिस्तान नए परमाणु स्थल का निर्माण इस्लामाबाद से 30 किलोमीटर पूर्व कहुटा शहर में कर रहा है। ये ताजा सबूत बताते हैं कि कैसे पाकिस्तान अपने परमाणु शस्त्रागार को बढ़ाने के प्रति आतुर है। उसका एकमात्र लक्ष्य आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल होना है। लेकिन यह परमाणु आपूर्तिकर्ता के सिद्धांतों के साथ असंगत है।
28 सितंबर 2015 और एक बार फिर 18 अप्रैल 2016 को एयरबस डिफेंस और स्पेन द्वारा लिए गए उपग्रह चित्रों का इस्तेमाल कर आईएचएस जेन की इंटेलिजेंस रिव्यू ने अपने विश्लेषण में पाया कि पाकिस्तान अपने क्षेत्र में एक नया यूरेनियम संवर्धन कांप्लेक्स स्थापित करने जा रहा है। सनद रहे कि पाकिस्तान ने पहला परमाणु परीक्षण 1998 में किया था और माना जा रहा है कि तब से अब तक उसने 120 परमाणु हथियार विकसित कर लिए हैं, जोकि भारत, इस्राइल और उत्तर कोरिया से ज्यादा है। पाकिस्तान दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता परमाणु भंडारण देश बनता जा रहा है और इसके मद्देनजर वह एक नए यूरेनियम संवर्धन कांप्लेक्स का निर्माण कर सकता है। विशेषज्ञों का यह आंकलन वाणिज्यिक उपग्रह चित्रण के आधार पर है।  कार्नेगी इंडोमेंट फॉर इंटरनेशलन पीस और स्टिमसन सेंटर के विद्वानों द्वारा 2015 में लिखी गई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पाकिस्तान प्रति वर्ष 20 परमाणु हथियार विकसित कर रहा है। एक दशक में इतनी बड़ी मात्रा में परमाणु हथियार बनाने वाला वह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। 

5 बार हो सकता था भारत पाक के बीच परमाणु युद्ध


पाकिस्तान के एक वैज्ञानिक ने चेतावनी दी है कि देश की सेना में बढ़ते कट्टरपंथ की वजह से परमाणु हथियार कट्टरपंथी इस्लामी लोगों के हाथों में जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान कम से कम पांच बारपरमाणु युद्ध के कगार पर पहुंच चुके थे।अपनी किताब ‘कन्फ्रन्टिंग द बम’ के विमोचन के लिए लंदन आए पाकिस्तानी वैज्ञानिक परवेज हुडभोय ने दो टूक शब्दों में कहा कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा और संरक्षा बहुत बड़ी चिंता का विषय है।
उन्होंने कहा कि सेना के अंदरूनी ठिकानों पर हुए हमले बताते हैं कि सेना के अंदर कट्टरपंथ बढ़ रहा है और इससे परमाणु हथियारों के कट्टरपंथियों के हाथों में जाने का खतरा है। परमाणु भौतिकी के वैज्ञानिक और रक्षा विश्लेषक हुडभोय ने कहा कि पाकिस्तान के पास भारत की तरह ही करीब 120 से 130 आयुध हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व में ऐसे हथियार केवल प्रतिरोधक उपायों के तौर पर देखे जाते थे। लेकिन सबसे खतरनाक बात ऐसे हथियारों की सामग्री की बढ़ती खोज है जिससे परमाणु युद्ध का नया पहलू सामने आ गया है। इसका मतलब है कि हथियारों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। वैज्ञानिक ने कहा कि भारत और पाकिस्तान कम से कम पांच बार परमाणु युद्ध के कगार पर पहुंच चुके थे। वर्ष 1987 में, वर्ष 1990 में, करगिल युद्ध (वर्ष 1999) के दौरान, वर्ष 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद और वर्ष 2008 में मुंबई हमलों के बाद दोनों देश परमाणु युद्ध के बिल्कुल करीब थे। हुडभोय ने कहा कि परमाणु युद्ध के कारण उत्पन्न होने वाले तनाव को देखते हुए हम इस मुद्दे पर यथास्थिति नहीं बने रहने दे सकते। विस्फोट के बाद रेडियोधर्मिता का भयावह असर होता है जिससे न सिर्फ उप महाद्वीप बल्कि पूरी दुनिया पर ही असर होगा।  परमाणु युग में भारत में इसकी शुरुआत 1974 में हुई जिसके बाद पाकिस्तान ने इसमें प्रवेश किया। वर्ष 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद एक तरह से परमाणु शस्त्रों की होड़ शुरू हो गई।
सोजन्य- भाषा