शनिवार, 17 सितंबर 2016

पियक्कड़ की श्रेणी (व्यंग्य)

एक कवरेज के दौरान सुबह के समय एक थानाध्यक्ष के समक्ष दो लोगों को बैठे देखा। मामले की पूछताछ की तो पता चला कि रात में एक तो शराब पीकर चौराहे पर उत्पाद मचा रहा था जबकि दूसरे को तो बिल्कुल भी होश नही था। वह उस जगह पड़ा था जहां सूअर इत्यादि जीव निवास करते हैं। चूंकि मैंने उसी रात थानाध्यक्ष महोदय को भी अंगूर की बेटी से मोहब्बत करते हुए देखा था तो मामला बड़ा दिलचस्प लगा। आखिर तीनों थे तो अंगूर की बेटी के चाहने वाले ही। बस अपना-अपना नसीब है। यहीं से मुझे पहली बार पियक्कड़ों की दो श्रेणी का आभास हुआ।
वैसे पियक्कड़ की वैरायटी तो बहुत-सी है। ड्रिंक करने के आधार पर जैसे डेली, विकली, मंथली, ओकेजनली इत्यादि। शराब के चयन के आधार पर जैसे कच्ची, देशी, विदेशी। ब्रांड के आधार पर जैसे विस्की, वोडका, रम आदि। मगर पियक्कड़ों की दुनिया में स्वर्ग-नरक की भांति दो अलग-अलग श्रेणियां भी है। इसे यह भी कह सकते हैं कि पियक्कड़ों को तीसरी दुनिया में पहुंचने के बाद जिन समस्याओं या परिस्थितियों का सामना करना होता है वो इस श्रेणी पर भी बहुत हद तक निर्भर करता है। पहली श्रेणी जिसे पियक्कड़ों की दुनिया में नरक की संज्ञा प्राप्त है में पियक्कड़ों के उपनाम बेवड़े, शराबी आदि होते हैं जबकि दूसरी श्रेणी जोकि स्वर्ग जैसी प्रतित होती है में पियक्कड साहब, अफसर आदि ही होते हैँ। नरक श्रेणी की पियक्कड़बाज में आमतौर पर मजदूर वर्ग, बेरोजगार, मध्यवर्गीय लोग होते हैं जिन्हें घर खर्च के अतिरिक्त अपनी तनख्वाह से पीने का जुगाड़ भी करना होता है। इस श्रेणी के डेली पैसेंजरों का मुख्य उद्देश्य होता है शराब की चाह। इनके रोम-रोम में शराब इस कदर बसती है कि पता ही नहीं चलता कब गटर में चले जाए या फिर किसी चौराहे के किनारे रात गुजर जाए, या किसी भी राह-चलते को नेताजी टाइप भाषण झाड़ दिया जाए ( हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि राहचलता कैसा व्यक्ति है, उसी के आधार पर पियक्कड़ के अगले कुछ मिनट निर्भर करते हैं)। इनकी खासियत यह होती है कि पीने का जुगाड़ तो देशी का होता है (जिसे पीते भी है) मगर यदि उसपर अंग्रेजी मुफ्त में मिल जाए तो गुरेज नही। फिर तो भइया गटर और रोड साइड एरिया ठीक ही बना है इन लोगों के लिए। दूसरे स्वर्ग कैटेगरी के पियक्कड़ों में भी डेली पीने वाले भी होते और ओकेजनली पीने वाले भी। मगर इनकी खासियत यह होती है कि ये पढ़े-लिखे अंदाज में ड्रिंक करते हैं, दूसरा लक्ष्मी जी का अभाव नही होता तो पूर्णरूप से स्वंय जी-भरकर पीने का मादा रखते हैं। इनकी खास बात यह है कि अघोरी या पूरा टल्ली होने के बाद भी इनका रुतबा कम नही होता। ये गाली भी देते हैं, बकबक भी करते हैं मगर सबकुछ होता है प्रोफेशनल अंदाज में। इनको अंगूर की बेटी से यदि किसी रोज ज्यादा मोहब्बत भी हो जाए तो भी इनके सिपहसालार घर तो छोड़ ही देते हैँ। कुलमिलाकर कहे तो इनकी नरक श्रेणी के लोगों की तरह बेकदरी नहीं होती।
नरक श्रेणी के लोगों में कुछ डिमेरिट भी है, इनमें से कुछेक तो दिन ढ़लने तक का इंतजार भी नही करते और अपना कार्यक्रम सूर्य देवता के समक्ष ही शुरू कर देते हैँ। जिस प्रकार एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है उसी प्रकार ऐसे ही कुछ निकम्मों की वजह से पूरी नरक श्रेणी को दोष झेलना पड़ता है। पीने के पश्चात अधिकांश नरक श्रेणी के पियक्कड़ों में बनावट का भाव भी ज्यादा देखने को मिलता है, (यह वही भाव होते हैं जोकि स्वर्ग श्रेणी के ज्यादातर लोग बिना पीए रखते हैं) शायद कामयाब ना होने की वजह से डिप्रेशन में गए पियक्कड़ भाइयों के पास खुद को कामयाब मानने का यही एक अवसर हो, मगर हमारा समाज है कि समझता नही जज्बातों को।
स्वर्ग श्रेणी के पियक्कड़ों में अधिकांश वो ही होते हैं जो नरक श्रेणी के पियक्कड़ों को ज्यादातर कोसते हैँ। वैसे नरक श्रेणी के लिए यही होना भी चाहिए। इसके पीछे तर्कों पर नजर डाले तो सबसे बड़ा तर्क यह हैं कि वह काबिल ना बन सका। यदि काबिल बन गया होता तो अंगूर की बेटी से मोहब्बत भी करता और सामाजिक दर्जा भी मिलता, छिककर पीता भी और किसी की उस पर हाथ साफ करने की हिम्मत भी ना होती। दूसरा तर्क है कि काबिल ना भी होता तो उसके पूर्वज इतने काबिल होते कि उनकी औलाद को कुछ करना ना पड़ा यानि की खूब पैसे वाला होता। तब भी उसको एक प्रतिष्ठित सामाजिक दर्जा मिल सकता था और कोई पियक्कड़ नही बोलता। मगर यदि इन दोनों में कोई भी ना हो तो फिर उसे अंगूर की बेटी से मोहब्बत करने की इजाजत भला यह समाज क्यों दे?
समाजिक तौर पर देखे तो नरक श्रेणी के पियक्कड़ों को समाज के लिए कलंक माना जाता हैं, इन्हें समाज पर बोझ तक कहकर भी परिभाषित किया जाता है मगर स्वर्ग कैटेगरी के पियक्कड़ों का समाज में अपना अलग ही रूतबा होता है। समाज के कर्ताधर्ता तक में भी इस श्रेणी के लोग होते हैँ। पुलिस से लेकर शिक्षकों तक और चिकित्सकों से लेकर नेताओं तक के शराबी लोगों को स्वर्ग की श्रेणी प्राप्त है भइया। सबसे बड़ी खासियत ये हैं कि स्वर्ग श्रेणी के पियक्कड़ों को कोई पियक्कड़ नही कहता। ये हमारा सामाजिक दोष है या कुछ ओर! इसका फैसला तो आपको ही करना है। मेरा तो एक बहुत छोटा-सा सवाल है-
शराबी तो सभी होते हैं फिर इतना भेदभाव क्यों है साहिबान?

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