मंगलवार, 13 सितंबर 2016

जानें मेडिकल टूरिज्म के तहत क्यों भारत आ रहे हैं विदेशी


यूरोप और अमेरिका, स्पेन, आस्ट्रेलिया आदि देशों में भारत के मुकाबले चिकित्सा मंहगी है। वही,पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान,अफगानिस्तान व खाड़ी देशों में जनसंख्या के सापेक्ष चिकित्सा संसाधनों का अभाव है। इसलिए विदेशों से बड़ी संख्या में लोग भारत ईलाज कराने आ रहे हैं। पिछले 4-5 सालों में मेडिकल टूरिज्म सेक्टर में भारी बूम आया है। सालाना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसी के चलते अब इण्डिया में इस क्षेत्र में रोजगार की भी अपार सम्भावनाएं बढ़ गई है साथ ही सरकार इस उघोग को विकसित कर भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकता है। मेडिकल टूरिज्म पर प्रकाश डालती एक रिपोर्ट-

भारत के मेडिकल सेक्टर में महाशक्ति बनकर उभरने के संकेत स्पष्ट दिखाई देने लगे है। पिछले 5 वर्षों में विदेशियों की संख्या में लगातार हो रहा इजाफा इसकी पुष्टि करता है। यूं तो भारतीय चिकित्सकों ने चिकित्सा जगत में विश्व पटल पर पहले से ही अपनी धाक जमा रखी है। भारत आ रहे विदेशी मरीजों में ऐसे मुल्कों के मरीज है जिनमें चिकित्सा सेवाएं नही के बराबर है, वही कुछ ऐसे मुल्कों से भी ताल्लुक रखते है जहां चिकित्सा सुविधाएं अपेक्षाकृत बेहतर है और उनकी गिनती विकसित देशों में की जाती है। इन मरीजों के भारत आने के अलग-अलग कारण है। खाड़ी देशों के अतिरिक्त अफगानिस्तान,पाकिस्तान,बंग्लादेश आदि देशों से मरीज इसलिए भारत आते है ताकि उन्हें अच्छी चिकिस्ता सेवाएं उपलब्ध हो सकें। क्योंकि इन देशों में जनसंख्या के सापेक्ष चिकित्सा सुविधाएं नही के बराबर है। वही अमेरिका,आस्ट्रेलिया,स्पेन आदि देशों से मरीज इसलिए भारत पंहुच रहे है क्योंकि वहां चिकित्सा सेवाएं आम आदमी की पंहुच से बाहर है और इलाज कराने के लिए मरीज के एक बड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसलिए इन सभी देशों के लोग भारत जैसे देशों की ओर रूख करने को मजबूर है। ईलाज कराने भारत आ रहे विदेशियों के लिए अब यहां बकायदा कंस्लटेंसी खुल चुकी है जो भारत में इनके रहने से लेकर ईलाज कराने तक का ठेका लेती है। इसकी एवज में मोटी धनराशि इन विदेशी मरीजों से ली जा रही है। मैक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में एचओडी मेडिसिन के पद पर कार्यरत डॉ.नरेश डैंग के अनुसार भारत में पिछले 4-5 सालों में मेडिकल टूरिज्म ने अपनी जडे जमाई है। विदेशों में ईलाज के लिए मरीजों को बहुत-सी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है, तब जाकर कही ईलाज के लिए एप्वाइटमेंट मिलती है। इसके विपरीत भारत में विदेशों के मुकाबले ईलाज तो सस्ता है ही इसके अलावा यहां औपचारिकताएं नाममात्र है। जिसे विदेशी एक पल्स पाइंट के रूप में लेते है। अपोलो के डॉ.एस.त्यागी के अनुसार भारत में किडनी ट्रांसप्लांट,न्यूरोसाइंस, कॉस्मेटिक सर्जरी, हार्ट सर्जरी,कैंसर, आर्गेजन ट्रांसप्लांट के इलाज के लिए भारी संख्या में विदेशी आ रहे है। विदेशी मरीजों को इलाज कराने के लिए यहां 2-3 महीने तक रहना भी पड़ता है। आज के समय में  ईलाज कराने के लिए भारत विदेशियों की पहली पंसन्द बना हुआ है।

जाने मेडिकल टूरिज्म को
मेडिकल टूरिज्म का अर्थ है कि किसी दूसरे देश में जाकर ईलाज कराना। विदेशों में ईलाज बेहद मंहगा होने के साथ-साथ औपचारिकताएं भी अधिक है। वही भारत जैसे मुल्क में ईलाज विदेशों की अपेक्षा सस्ता और सुलभ है। इसी का लाभ उठाने के लिए विदेशी मरीज यहां आकर ईलाज कराना चाहते हैं। भारत में सालाना विदेशी मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में मेडिकल टूरिज्मके क्षेत्र में सालाना 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो रही है।

विदेशियों के भारत आने की वजह क्या है
इलाज के मामले में सबसे बुरी हालत अत्यधिक सम्पन्न और विकसित कहे जाने वाले देशों की है। इनमें यदि अमेरिका की बात करें तो, वहां यदि किसी व्यक्ति को तत्काल कोई सर्जरी  करानी हो तो वह संभव नही है। क्योंकि वहां के अस्पतालों में मरीजों को इतनी अधिक औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं कि उसे करते-करते मरीज की मौत भी हो सकती है। अमेरिका से भारत में कडनी ट्रांसप्लांट कराने आई विलियम्स विले से जब ये पूछा गया कि वह अमेरिका में रहते हुए भी भारत ईलाज कराने क्यों आए है तो उनका कहना था कि अमेरिका में इलाज कराना किसी बड़ी मुसीबत को गले लगाना है। वहां इलाज कराने की प्रक्रिया में ही मरीज लाचार और बेबस हो जाता है। उनके अनुसार अमेरिका में ईलाज कराने से पहले मरीज को अपना नाम उस अस्पताल में रजिस्टर कराना होता है जहां वह इलाज कराना चाहता है। 2-3 महीने के बाद मरीज को अपांइटमेन्ट दी जाती है, वह भी लगभग एक से डेढ़ महीने बाद की होती है। बकौल विलियम्स, भारत में इलाज के लिए मरीज को औपचारिकताएं नाममात्र को पूरी करनी होती है साथ ही यदि आपातकाल में मरीज को किसी चिकित्सक की सलाह की जरूरत हो तो वह भी हर समय उपलब्ध रहती है और यहां इलाज में लगने वाली रकम भी विदेशी देशों के मुकाबले अत्यधिक कम है। आफगानिस्तान से अपोलो दिल्ली में ईलाज कराने आए एक युवक के अनुसार उनके देश में चिकित्सा संसाधनों का अभाव है, वही भारत में चिकित्सा की अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध है। हांलाकि उनके देश के मुकाबले भारत का ईलाज मंहगा है मगर ओर देशों के मुकाबले भारत का ईलाज भी सस्ता है। इसलिए वह ईलाज कराने भारत ही आते है। स्पेन से इलाज कराने के लिए भारत आए जैक्सन ब्रैनले ने जनवाणी को बताया कि स्पेन में अस्पताल मरीज का ईलाज करने से पहले ये जांचते है कि क्या मरीज का मेडिकल बीमा है या नही । स्पेन में मेडिकल बीमा कराना भी आम आदमी की पंहुच में नही है,क्योंकि इसकी एवज में एक मोटी रकम अदा करनी होती है, जो आम आदमी की पंहुच से बाहर है। अगर मरीज का मेडिकल बीमा नही होता तो अस्पताल ईलाज करने में आनाकानी करते है, यही वजह है कि उन्हें भारत का मेडिकल सेक्टर बहुत भाया है। वह इससे पहले भी अपने पिता का ईलाज कराने भारत आ चुके है।

मेडिकल टूरिज्म का साइड इफेक्ट
विशेषज्ञों की मानें तो विदेशी मरीजों की बढ़ती संख्या भारतीय मरीजों के लिए पेरशानी का सबब बन सकती है। सरकार ने यदि समय रहते इस उघोग को विकसित नही किया तो भारतीय मरीजों को ही सबसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। प्रोफेसर डॉ.हरनेक सिंह गिल के अनुसार विदेशी यहां आकर ईलाज कराने की एवज में जो धनराशि देते है वह भारतीय मरीजों द्वारा दी गई धनराशि से ज्यादा होती है। ऐसे में प्राइवेट चिकित्सालय विदेशी मरीजों को ही वरीयता देगें। विदेशी मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सरकार को समय रहते इस उघोग को विकसित करने पर विचार करना चाहित ताकि विदेशी मुद्रा का भी अर्जन हो सके और आने वाले समय में भारतीयों को परेशानी का सामना ना करना पड़े।

सेरोगेसी भी है इसी का हिस्सा
सेरोगेसी जिसे किराए की कोख कहने में भी कोई श्योक्ति नही होनी चाहिए, भी मेडिकल टूरिज्म का ही एक हिस्सा है। विदेशों से बड़ी संख्या में दंम्पत्ति भारत आकर किराए की कोख खरीद रहे हैं। सेरोगेसी से प्राप्त बच्चे के लिए विदेशी दंपत्ति 40-50 लाख रूपये देते है। भारत में यूपी और बिहार की महिलाएं इस धन्धें में सबसे ज्यादा लिप्त है। विदेशी दम्पत्तियों के लिए ऐसी महिलाओं को ढूढने का काम कंस्लटेंसी करती है। इन दम्पत्तियों से तो ये कंस्लटेसी मोटी रकम लेती है मगर सेरोगेट मदर को ये मात्र दो-तीन लाख रूपये ही देते है। इसकी पुष्टी हाल ही में दिल्ली की एक एनजीओ सेंटर फॉर सोशल रिसर्च द्वारा कराये गये ताजा अध्ययन में हुई है।

विदेशों के मुकाबले कितना सस्ता है इलाज
ऑपरेशन-                 विदेश-                   भारत

लीवर ट्रांसप्लांट-            3-4लाख-                 60 हजार

आर्थोपैडिक सर्जरी-          20-30 हजार-             7-8 हजार

हार्ट सर्जरी-               35-40 हजार-             7-9 हजार

कॉस्मेटिक सर्जरी-          25-30 हजार-             2-3 हजार

बोन मैरो ट्रांसप्लांट-         2-3 लाख-                30-35 हजार

(यह खर्चा अमेरिकी डॉलर में है और यह आंकलन अपोलो के चिकित्सकों का अनुमानित है, इसके अलावा मरीज के रहने और कंस्लटेंसी का खर्च अलग है)

हर साल भारत में बढ़ रही है विदेशी पर्यटकों की संख्या
पर्यटन मंत्रालय के आकड़ों पर गौर करे तो भारत के राज्‍यों और संघ-शासित राज्‍यों में 2011 की तुलना में वर्ष 2012 के दौरान विदेशीपर्यटकों की यात्राओं की संख्‍या में 6.33 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जबकि2010 की तुलना में 2011 में 8.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। राज्‍यों और संघ-शासित राज्‍यों में विदेशी पर्यटक यात्राओं की संख्‍या 2012 के दौरान20.7 मिलियन रही, जबकि 2011 में यह संख्‍या 19.5 मिलियन और2010 में 17.9 मिलियन रही थी। गत माह जून 2013 में विदेशी पर्यटकों के आगमन में भी 2.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जून 2012  के4.33 लाख की तुलना में जून 2013  में 4.44 लाख विदेशी पर्यटक भारत आए। जनवरी से जून 2013  के बीच 33.08  लाख पर्यटक आए,जबकि पिछले साल जनवरी से जून के बीच 32.24 लाख पर्यटक आए थे। इस तरह इस साल जनवरी से जून के बीच भारत आने वाले पर्यटकों की संख्‍या में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
विदेशी मुद्रा में भी हो रहा इजाफा
पर्यटन मंत्रालयों के आकड़ों के अनुसार पिछले साल की सापेक्ष जून2013  में विदेशी पर्यटन से कमाई बढ़कर 551 करोड़ रुपये हो गई। जून2013  में विदेशी पर्यटकों से 7,036 करोड़ रुपये की कमाई हुई, जबकि यह कमाई 2012  के जून में 6,485 करोड़ रुपये थी। वही जून 2011 में विदेशी पर्यटकों से 5,440 करोड़ रुपये का अर्जन हुआ था।

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