शनिवार, 17 सितंबर 2016

भीख मांगने से लेकर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी तक का सफर (inspirational story of jaivel)

यह कहानी है चेन्नई के जयवेल की जिसने विषम परिस्थितियों में भीख मांगकर परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह किया, कडी मेहनत और सच्ची लगन से गरीबी में आने वाले चुनौतियों का सामना किया और खुद को साबित करते हुए वह कर डाला जोकि आम और खास तक के लिए एक सपना होता है। जी हां, जयवेल ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का एंट्रेस एग्जाम पास कर लिया और अब वह भीख नही मांगेगा, बल्कि पढ़ाई करेगा।

एंट्रेस किया पास
22 साल के जयवेल ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का एंट्रेस एग्‍जाम पास किया है। अब इसके बाद जयवेल को परफॉर्मेंस कार एन्‍हैंसमेंट टेक्‍नोलॉजी इजीनियरिंग में एडमिशन मिल जाएगा। इस कोर्स में रेसिंग कारों की क्षमता बढाए जाने के बारे में सिखाया जाता है। आपको लग रहा होगा कि इसमें क्‍या बड़ी बात है कि वह विदेश जाकर पढा़ई कर रहा है। कई छात्र विदेश जाते हैं और अपनी पढा़ई पूरी करते हैं। लेकिन आपको बता दें कि जयवेल के लिए चेन्‍नई से कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का सफर इतना आसान नहीं था। विदेश तो छोड़िये जयवेल ने भारत तक में अपने पढा़ई की कल्‍पना तक नहीं की थी।

मां है शराबी, भीख मांगकर होता था परिवार का गुजारा
जयवेल की पारिवारिक पृष्‍ठभूमि ऐसी नहीं है कि इतना बड़ा सपना संजो सके। वास्‍तव में जयवेल ऐसे परिवार से है जो कि भीख मांगकर अपना गुजारा करता था। जयवेल के पिता इस दुनिया में नहीं है और मां को शराब पीने की आदत है। एक समय तो जयवेल ने खुद भीख मांगकर अपना और परिवार का पेट पाला था।
80 के दशक में आंध्र प्रदेश में सूखा पड़ने के कारण लोगों को अपने घरों को छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा था। सूखे के कारण जयवेल का परिवार चेन्‍नई पहुंचा। वहां कोई ठौर-ठिकाना तो था नहीं इसलिए भीख मांगने के अलावा कोई विकल्‍प नहीं था। जयवेल उन लड़कों में से था, जिनके घरवाले ही उनसे भीख मंगवाते हैं। शाम तक जो भी आता था, उसमें से आधे से ज्यादा की उसकी मम्मी शराब पी जाती थीं।

सुयम चैरिटेबल की पहल पर पहुंचा कैम्ब्रिज
लेकिन जयवेल के ये दुख भरे दिन तब गायब हुए जब सुयम चैरिटेबल ट्रस्‍ट के उमा व मथुरमन की नजर उस पर पड़ी। ये कपल फुटपाथ पर बच्‍चों की फिल्‍म 'पेवमेंट फ्लॉवर' बना रहे थे। तब उन्‍होंने जयवेल को देखा तो उन्‍हें लगा कि इस लड़के के लिए कुछ करना चाहिए। उन्‍होंने पढ़ाई के लिए जयवेल के परिवार से बात की तो उन्‍हें ना ही जवाब में मिला क्‍योंकि परिवार को लगा कि सरकार से पैसा लेकर ये लोग उनके लिए कुछ नहीं करेंगे। लेकिन उनकी गलतफहमी दूर करते हुए दोनों ने जयवेल को 1999 में अपनी कस्‍टडी में लिया। जयवेल ने उनकी मदद से इंटरमीडिएट में अच्‍छे अंकों से पास होकर दिखाया। इसके कारण उसे फंडिंग मिली। उसने कैम्ब्रिज यूनिविर्सटी के लिए एंट्रेस एग्‍जाम दी और सफलता मिल गई। उमा का ट्रस्ट अब तक 17 लाख रुपए कर्जा केवल इसलिए ले चुका है, ताकि जयवेल को लन्दन भेजा जा सके। सलाम ऐसे ट्रस्ट को और उमा जैसे लोगों को जिन्होंने प्रतिभा को तराशा और उसे एक नई दिशा दी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें